History of Mira Bhayander . लेखक :- राजन वासु नायर, अनुवादक :- संजय उपेन्द्र नाथ सिंह ।
मिरा भाईंदर की समस्यायें एवं निराकरण :- date: 15/08/2008
अपने शहर मिरा भाईंदर की समस्याओं के समाधान के लिए सर्वप्रथम अपने देश की आजादी से लेकर अबतक की अपने शहर की जानकारी आवश्यक है| आजादी के पूर्व मिरा गाँव को तत्कालीन शासकों ( अंग्रेजों) ने नमक की खेती के लिए उपयुक्त माना था | उस समय मिरा भाईंदर में चेणा गाँव, काशी गाँव, घोडबंदर गाँव, पेणकर पाडा, नवघर, भाईंदर, राईं, मुर्धा एवं उत्तन गाँव थे | इन सारे गाँवो को मिलाकर लगभग ३८०० मकान थे | उत्तन विभाग में एंग्लो इंडियन, चेणा गाँव, काशीगाँव एवं मिरा गाँव आदिवासी बहुल तथा शेष बचे हुए गाँव में आगरी समाज के लोग रहते थे | उस समय इन लोगों के मकान मिट्ठी के बने होते थे | इन लोगों का मुख्य व्यवसाय मच्छी पकड़ना एवं नमक उत्पादन का था | अपने जीवन यापन के लिए यहाँ के निवासी मुख्यत: चावल उगाते थे | सन १९५३ में ग्राम पंचायत का गठन हुआ | शैक्षणिक एवं तकनिकी रूप में अति पिछडे होने के वजह से यहाँ के निवासी बगैर किसी संरचना के अपने सुविधानुसार मकान बनवाना शुरू किया | इन लोगों के मकान बनते समय ग्राम पंचायत ने अंकुश नहीं लगाया एवं साथ ही इनकों तकनीकी जानकारी प्रदान करने की जहमत नहीं उठाई।
काशिमिरा से उत्तन गोराई मार्ग को तत्कालीन ग्राम पंचायत ने भवनों एवं कार्यालयों के निर्माण हेतू इस मार्ग के स्तर के ही मानक स्तर स्वीकार किया था, जो वास्तव में समुद्र स्तर से नीचे है इस मार्ग का निर्माण अंग्रेजी हुकुमत द्वारा किया गया था |
इस शहर में नये कारखानेां का दौर आया | कारखानों के मालिकों ने अपने कर्मचारियों एवं तकनिशियनों को रहने हेतू अपने सुविधानुसार (बिना किसी कायदे कानून का पालन करते हुए) मकानों का निर्माण करना शुरू किया | इन लोगों ने भी अंग्रेजी शासको द्वारा निर्मित मार्गो को ही मानक स्तर मानते हुए अपने कारखानों एवं भवनों का निर्माण किया था | अब बारी आयी देश महानगर के भवन निर्माताओं का जिन्होंने मिरा भाईंदर क्षेत्र को अपने व्यवसाय के लिए सर्वोत्तम मानते हुए भवन निर्माण के क्षेत्र मे दिन दुना रात चौगुना तरक्की किया | यह दौर सत्तर के दशक से लेकर नगरपालिका बनने तक चलता रहा, इस दौरान हजारो के तादाद में बगैर शहर संरचना के भवन निर्माण व्यवसाय फलता फूलता रहा | यहाँ यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि इन हजारों भवनों में मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझी गई | कारखाना मालिकों एवं भवन निर्माताओं ने मिरा भाईंदर की जमीन कौडियों के भाव में खरीदते समय इस बात का भी ध्यान नहीं रखा कि जमीन का असली मालिकाना हक किसके पास है| भवन निर्माताओं ने महज डेव्हलपमेंट अधिकार मिलते ही भवन निर्माण कार्य शुरू किया एवं सभी फ्लैटों एवं भवनो को मूलभूत सुविधाओं के बगैर ही बेच दिया | इन सभी क्रियाकलापों को अंजाम देते समय भवन निर्माताओं ने सारे कायदे कानून को ताक पर रख दिया |
मूलभूत सुविधाओं में पेयजल, सडक एवं मलप्रवाह परियोजना की कमी है| यदि सडक एवं नालों का निर्माण ग्राम पंचायत ने करवाया भी था तो वह भी समुद्र स्तर से नीचे है जिस वजह से समुद्र में ज्वार भाटा के समय शहर का पानी शहर के बाहर नहीं निकल पाता है एवं शहर में जल जमाव की समस्या बनी रहती है|
इसका मुख्य कारण भवन एवं कारखानों के निमार्ण या संचरना करने वालों के पास अनुभवी वकील, सिविल इंजिनियर, आर्किटेक्ट एवं सी.ए. की कमी थी | जिन वकील, सिविल इंजिनियरों, आर्किटेक्ट, सी.ए. के पास अच्छे अवसर नहीं थे उनके लिए मिरा भाईंदर के निमार्ताओं के पास अवसर उपलब्ध हो गए | उनके लिए यह जगह काफी फलदायक साबित हुई | निमार्ताओं को अब वित्तिय सहायक या पोषकों की जरूरत हुई| वित्तिय सहायकों ने निर्माताओं के सामने अधिक से अधिक मुनाफे वाले प्रोजेक्टस को लाने का आग्रह किया | भवन एवं कारखाने निमार्ताओं ने अपने आर्किटेक्टों को कम बजट वाले प्रोजेक्टस तैयार करने को कहा | इन्हीं आर्किटेक्टों ने निवास स्थान के नीचे कानूनी व गैरकानूनी तरीके से दुकान का डिजाइन तैयार करके इन निर्माताओं को भरपुर फायदा पहूँचाया , इस बात को अधिकारियों ने अनदेखा किया |
अब एक बार फिर निर्मातार्ओं ने अपने यहाँ कार्यरत सिविल इंजिनियरों को बजट कम करने हेतू बाध्य किया | अपने मालिकों को खुश एवं अधिकतम मुनाफे हेतू आर्किटेक्ट के प्लानों में कटौती शुरू कर दी |
मिरा भाईंदर के तत्कालीन नगर पालिका के पास भी स्तरीय या अनुभवी सिविल इंजिनियर्स उपलब्ध नहीं थे | इसका भरपूर फायदा निमार्ताओं ने अपने प्रोजेक्टस पूरा करने में उठाया | प्रत्येक निमार्ताओं ने अपने स्टाफ के खाने पीने का ध्यान रखते हुए एक तत्कालीक जलपान गॄह को अपने ही प्रोजेक्ट में खाली स्थान पर शेड डालकर शुरू किया |
अब इन निर्माताओं के पास अपने फ्लैटस एवं कारखाने बेचने की समस्या आने लगी, इसका जवाब इन लोगो ने मुख्यत: मशहूर दलालों के पास नौकरी करने वाले स्टाफों को अच्छे प्रलोभनों के द्वारा अपने फ्लेटस एवं कारखाने को बेचने के लिए तैयार कर लिया | यह प्रक्रिया काफी सफल रही | मशहूर दलालों के स्टाफ ने भी मिरा भाईंदर में अपने पैर जमा लिए | इन दलालों ने अपना काम पुरा किया साथ ही कालांतर में यहाँ के जमीनों के भी सौदों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं| इन दलालों ने अपने पुराने मालिकों के साथ मिलकर दिग्गज भवन एवं कारखाने निमार्ताओं को भी मिरा भाईंदर का रास्ता दिखाया |
उपरोक्त दलालों ने मिरा भाईंदर में मुख्यत: निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगो को फ्लैटस एवं दुकानें (लघु उदयोग ) खरीदने के लिए तैयार किया | इस वर्ग के पास किसी भी प्रकार का कानूनी एवं तकनीकी जानकारी उपलब्ध नहीं थी | इन जानकारियों के अभाव में निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगों ने मिरा भाईंदर में घर एवं दुकानें खरीदते चले गए | इन लोगों के पास सरकारी कागजातों का भी जानकारी नहीं था | इस प्रक्रिया को देखभाल करने वाले निमार्ताओं के सलाहगारों ने कानून का पालन नहीं किया | शासकों ने भी इसका ध्यान नहीं रखा या इसकी जरूरत नहीं समझी | इसका भी भरपूर फायदा निमार्ताओं ने उठाया जबकि नुकसान खरीदारों को आने वाले दिनों में होने वाला है| निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगों ने अपने गाढी कमाई के द्वारा खरीदे गए अपने दुकान एवं आशियाने में आए तो इनके सामने सडक एवं पानी की विक्रराल समस्या मुह बाए खडी थी |
इन समस्याओं में एक कारण यहाँ राजनैतिक दलों का अभाव था, क्योंकि उन दिनों यहाँ महज एक व्यक्ति का ही प्रभाव था | इनके कार्यालय में ही मिरा भाईंदर के खास निर्णय लिए जाते थे। निर्माताओं ने इसका भी फायदा उठाया | उन दिनों के दर्ज अपराधिक मामलों में इसका उल्लेख आपको मिलेगा |
1970 के दशक में मिरा भाईंदर के इतिहास में दो नए चेहरों का उदय हुआ | यह दोनों व्यक्ति पढे लिखे थे इनमें से एक व्यक्ति ने भाईंदर और दूसरा व्यक्ति ने काशीमीरा में अपने अपने पैर पसारने लगे | इनमें से एक व्यक्ति ने पूर्णरूप से राजनैतिक सहारे के साथ भवनों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया, क्योकि यह व्यक्ति आर्थिक रूप से सुदॄढ था | दूसरे व्यक्ति ने अपराधिक ताकतों का सहारा लेते हुए राजनैतिक लाभ उठाया एवं तबेलों के निर्माण में सहयोगी बने | इन्होंने एक निजी विधालय की भी शुरूआत की, इस व्यक्ति ने अवैध भवन निर्माताओं से धन उगाही का काम तो किया ही साथ ही साथ वैध कारखानाओं के मालिकों से भी वसूली के कारोबार की शुरूआत कर दी | इस प्रकार मिरा भाईंदर में धन वसूली कारोबार में इस व्यक्ति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है| इस बात की पुष्टि उन दिनों के काशीमीरा पुलिस स्टेशन में दर्ज आपराधिक मामलों में उल्लेखनिय है|
उपरोक्त दोनों व्यक्तियों के कार्यकाल में मुंबई से छोटे बडे भवन निर्माता एवं कारखाना मालिकों का आगमन मिरा भाईंदर में काफी तेज हुआ | दहिसर चेक नाका से लेकर घोडबंदर एवं काशीमीरा से पूरे भाईंदर क्षेत्र मेज़्ज़् वैध एवं अवैध कारखानाओं के साथ तबेलों के निर्माण कार्य में तेजी आ गई| जिन भवन निर्माताओं ने अपने कारीगरों एवं अभियंताओं के खाने पीने हेतू शेड डालकर अवैध जलपान गॄह का निर्माण किया था, इन अवैध शेडों को चलाने वालों ने इसे रेस्टोरेंट में परिवर्तित कर दिया | मिरा भाईंदर में वैध एवं अवैध तबेलों का व्यापार भी फलने फूलने लगा | मिरा भाईंदर में होटल व्यवसाय के बढते अवसर को देखते हुए होटल व्यवसायिकों ने इस क्षेत्र के तरफ आना शुरू कर दिया |
इसी प्रकार तत्कालीन सभी राजनीतिक पार्टियों ने भी इस क्षेत्र के बढते एवं असंगठित आबादी को नजर में रखते हुए अपनी अपनी जमीन तलाशने लगे| उस दौरान सभी दलों ने अपने मुखिया ईमानदार एवं लायक व्यक्तियों को नहीं बनाते हुए ठीक इसके विपरीत किया | जिसके नतीजों का विवरण आनेवाले भाग में मिलेगा | अब राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक जरूरत हुई जिसे पूरा करने में इन दलों के मुखियाओं ने उस समय के प्राप्त अवसरों का भरपूर फायदा उठाया | इन दलों के बुदॄधिजीवी राजनेताओं ने अपने पद का फायदा उठाते हुए कानूनी ढंग से भी भरपूर लाभ उठाने के रास्ते ढूंढ लिए उदाहरणार्थ दूध बिक्री की एजेंसी, अखबार की एजेंसी, केबल टीवी वं कई महत्त्वपूर्ण कंपनियों के एजेंसी के साथ इन बुदॄधिजीवीयों ने दैनिक उपयोग में आनेवाले सामानों की भी एजेंसीयाँ आपस में बाँट ली | उन दिनों इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था | यातायात एवं पीने के पानी के साथ बिजली का खास अभाव था |
पानी जैसी मूलभूत सुविधा का हनन होने पर और राजनीतीक दलो का इस व्यापार में मजबूत पकड से उनमे आपस मे विवाद प्रारंभ हो गया | इस कमबद्ध सिलसीले से कई नये चेहरे सामने आने लगे| इसमे मुख्य रूप से एक नया चेहरा काफी तेजी से उभर कर शशक्त रूप से लोगों के सामने आया | नतीजन राजनीतीक माहौल के साथ व्यवसायिक वर्ग ने भी इन नये चेहरे का स्वागत किया | और नये चेहरे ने भी अपनी अदा से हर क्षेत्र में अपनी पकड काफी मजबूत किया |
अत: 1980 के दशक में दो पूराने चेहरे एवं एक नये चेहरे के अस्तित्व की लडाई ने एक नये कार्ले युग की शुरूवात की | एवं अपराधिक दुनिया के लोगों को मिरा भाईंदर का रास्ता दिखाने का शुरूवात भी इसी समय हुआ | जमीन की सौदेबाजी से लेकर होटल, बिल्डर, जैसे हर व्यवसाय में इनका हस्तक्षेप एवं नेतॄत्व होता रहा | राजनैतिक एवं व्यवसायिक सुदॄढ तीनों विशेष व्यक्तीत्व के व्यक्तियों ने इस कदर अपने प्रभाव से प्रशासन को प्रेरित कर दिया की जिल्हा कलेक्टर, पुलिस प्रशासन और ग्राम पंचायत के कर्मचारी एवं अन्य सरकारी दफतर ने आवश्यक कानूनी तरीकों या कानूनी जरूरतों को पुरा करना उचित नहीं समझा और शासन भी अनदेखा करने लगे|
नतीजन, सेंकडों इमारते नियमों को ताख पर रखकर बनाए गया | आज भी कई इमारते अति गंभीर अवस्था में दिखाई देती है| बिना सरकारी दस्तावेज एवं अर्धकानूनी कय – विकय दस्तावेज के कारण ऐसी इमारते आज भगवान भरोसे है | सरकार सभी प्रकार का टैक्स वसुल कर रही है| जैसे – रोड टैक्स, इलेक्ट्रीकसीटी टैक्स, प्रोपर्टी टैक्स एवं अन्य प्रकार का बी.एम.सी. टैक्स | लेकीन आम जनता की आर्थिक एवं जानमाल की हानी की जिम्मेदारी लेने से सरकार एवं उनके उपक्रम क्योंकि अव्यवस्थित है| इस विषय को लेकर कोई भी स्थानिय नागरिक जागरूक भाषा में बात तक करने से डरते है| और अगर आगे इस अव्यवस्थिता के बारे में जानने आते भी है तो इस विषय को दबा दिया जाता है|
इसका पहला मुख्य कारण शासन ने मिरा भाईंदर को ग्रामीण क्षेत्र का दर्जा दिया है| और दुसरा कारण शासनिक अधिकारी की नियुक्ती योग्यता अनुसार नहीं हुआ | मुंबई से नजदीक होने के कारण सारे सामाजिक एवं आर्थिक अपराधिक लोग अपने मनपसंद जगह मिरा भाईंदर को ही चूनते रहे है| अत: एक अर्थ में शुरू से ही मिरा भाईंदर का नेतॄत्व अपराधिक लोगों के हाथ में ही रहा है|
मिरा भाईंदर में, व्यवसायिक एवं अन्य सभी बढे हुए अवसर को देखते हुऐ राजनैतिक दल एवं व्यावसायिक दल सभी अपने अपने कमर कसने लगे | व्यापार एवं राजनैतिक व्यवस्था में कई नए चेहरे दिखने लगे और विभिन्न व्यापार एवं विभिन्न दलों के कई नए चेहरे ने हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया| नतीजन कई नए समुह का निर्माण हुआ ये समुह अपने अपने संघ के लिए कार्यरत थे| हर गलत सही काम को अंजाम देते थे| जनसंख्या के आधार पर सिक्यूरीटी, केबल कनेक्शन, दूध सप्लाई, बिल्डींग मटेरियल सप्लाई, पेपर सप्लाई जैसे सारे व्यवस्था का क्षेत्रिय बटवारे से लेकर व्यावसायिक क्षेत्रिय अधिपत्य का बटवारा प्रारंभ हो गया |
मिरा भाईंदर के बाहर से जो भवन निर्माता या व्यवसाय करने वाले आते थे उनका आधार इस बात पर निर्णायक होता था , कि व्यवसायिक या क्षेत्रिय अधिपत्य किसके पास है एवं ताकतवर समुह कौन है? इस प्रकार से संपर्क में आकर उनके सहायक का सहारा लेते हुए व्यवसाय प्रारंभ करते थे| इस प्रकार ८५ से ९० दशक में मुख्य रूप से प्रमुख राजनितीक दल का सहारा लेते हुए, एक सशक्त नया चेहरा उभर कर साफ साफ लोगों को नेतॄत्व करने लगा | ये चौथा चेहरा सशक्त था एवं अन्य पाँच - छ: चेहरे इनके इर्द गिर्द सहायक के रूप में कार्यरत थे एवं इनके हर कार्य को अंजाम देते थे प्रमुख राजनितिक दल का सहयोग होने के कारण नकारात्मक एवं सकारात्मक हर काम को रूप दिया जाता था।
अत: पुराने तीन ताकतवर चेहरों में से सिर्फ एक ही चेहरे ने नये ताकातवर चेहरे को चुनौती दिया | इसी समय ग्राम पंचायत का रूप नगर परिषद में तबदील हुआ और जनसंख्या लगभग ४ लाख के करीब था एवं नगर का विकास कायदे अनुसार होना था लेकिन मुख्य रूप से दो लोगों ने एवं अन्य ७ - ८ लोगों ने अपने सोच के हिसाब से नगर पालिका के कार्य को रूप देने लगे क्योंकि जितने भी शासकीय कर्मचारीयों की नियुक्ती हुई वे सभी नियमानुसार नहीं थे, इनको ये सशक्त लोगों ने दबाव में लाकर अपनी सोच के अनुसार जरूरत पुरी करने लगे|
इसका फल यह हुआ की अनेक इमारतों के निर्माण एवं ९० प्रतिशत ठेकेदारी का काम इन लोगों के प्रभाव से हुआ जो गैरकानूनी था, अत: अराजकता फैल गयी | उदाहरण के तौर पर अराजकता इस कदर हुआ की भवन निर्माताओं ने एक - एक फ्लैट दो - दो लोगों को बेचने लगे और एक फ्लैट पर तीन - तीन बैकों से कर्ज लिया जिससे वहाँ के रहिवासी आज तक इस दर्द से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं| भवन निर्माताओं ने गॄहनिर्माण कानून का उल्लंघन किया, जिसके चलते बने हुए भवनेां को सरकार की मान्यता न मिलने से स्थानिक रहिवासी सडक, बिजली, पीने का पानी जैसे सारे प्राथमिक सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं| मिरा भाईंदर में ऐसी समस्याओं की तादाद बढने की वजह से सारे सरकारी बैकों ने लोन सुविधा बंद कर दी |
मिरा भाईंदर शहर के सरकारी बैंकों के द्वारा दिए जाने वाले हाउसिंग लोन बंद होने के कारण इस शहर में प्राइवेट बैंकों का तेजी से आगमन प्रारंभ हुआ | नतीजन रहिवासियों को राहत तो मिली परंतु इसका फायदा दलाल के रूप में काम करने वाले लोगों ने बहुत कम पूंजी लगा कर भवन निर्माण शरू किया | इस प्रक्रिया का फायदा उठाते हुए मिरा भाईंदर शहर के वकीलों, चार्टड एकॉउनटेन्ट, आर्किटेक्ट एवं छोटे स्तर के कई ठेकेदारों ने आम जनता को गुमराह करते हुए हजारों की तादाद में भवन निर्माण कार्य शुरू किया | इन लोगों में से कई आज इस शहर के नामचीन भवन निर्माताओं की श्रेणी में आते हैं|
उस समय इन भवन निर्माताओं ने जिन भवनों का निर्माण किया उसमें भवन निर्माण से संबंधित कायदे कानून को ताक पर रखते हुए ( महज पच्चीस फीसदी भी सरकारी कायदे कानून का ध्यान नहीं रखा) एवं आम जनता, जो सरकारी कायदे कानून से अंजान थी, इनको अपने अवैध भवनों में खुन पसीने की कमाई द्वारा जमा की गई धन से फ्लैट खरीदवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, इन अवैध भवनों के निर्माण में लिप्त भवन निमार्ताओं ने तब के कार्यरत सरकारी अधिकारी एवं बैंक कर्मचारिर्यों का भरपूर फायदा उठाया |
अवैध भवन निर्माण में निमार्ताओं ने महज डेवलपमेंट अधिकार लेते हुए भवन निर्माण कार्य करते हुए दलालों के साथ मिलकर आम जनता को फंसाया | नतीजा यह हुआ कि यह भवन गिरने के बाद इसका रिडेवलपमेंट करना भी असंभव दिखाई देता है क्योंकि इन भवनों के निर्माण के समय निर्माण संबंधी कायदे कानूनों को ध्यान में नहीं रखा था |
उपरोक्त सभी तथ्यों का ताजा उदाहरण मिरा रोड के सेक्टर ४ में बिंल्डींग नं.१०, आकाश शांतिनगर को.हॉ.सो.लि. का है| जिसे दो वर्ष पूर्व मनपा ने रहने के योग्य नहीं बताया था | परंतु इस भवन में तीन गरीब परिवार रहते थे, दिनांक ३०-११-२०१० को इस भवन के दो स्लैब गिरने के बाद पुन: मनपा अधिकारियों ने जल्द से जल्द भवन को सील कर दिया |
इस घटना के बाद आज तक इस शहर के किसी भी राजनितिक पार्टी, नेता, भवन निर्माता या कोई भी सरकारी अधिकारी ने फोटो निकलवाने के सिवाय किसी भी प्रकार की सहायता इस भवन के रहिवासियों को मुहैया कराने की कोशिश तक नहीं की है|
इस घटना के बाद इस क्षेत्र के तमाम रहिवासी एवं अन्य हॉउसिंग सोसायटीयां इस दुविधा में है कि, अगर भविष्य में इनके भवन या सोसायटी के साथ इस तरह की घटना होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा एवं इसका निदान क्या होगा ?
इसका एक मुख्य कारण यह है कि, इन सभी बातों की जानकारी मकान खरिदारों को नहीं थी | अधिकारीयों को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी, वे लोग इन सभी बातों को समझना न चाहे या अनदेखा करते रहे इसका फायदा उठाते हुए केवल भवनों का निर्माण ही नहीं हुआ बल्कि होटल, कारखाना, विधालय, निजी अस्पताल इन सभी इमारतों का निर्माण भी किया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि न सभी इमारतों को पानी, बिजली और सडक की सुविधा महानगर पालिका के द्वारा दिया गया |
यह सभी सुविधाएं आसानी से मिलने के कारण मकान खरिदारों ने अन्य कोई भी जानकारी प्राप्त करना जरूरी नहीं समझा, और सारी बाते कई वर्षों तक कानून के नजरों से छुपी रही | आज मिरा भाईंदर की आबादी लगभग १५ लाख के करीब है| इसी शहर में बनी हुई बहुसंख्यक भवनों का सोसायटी बन चुका है, लेकिन आज भी इन सभी इमारतों में कायदे कानून की बातों का अभाव है| आनेवाले समय में जो भी नतीजे होंगे वह मकान मालिकों को झेलने पडेंगे| किसी भी राजनैतिक पार्टी या सामाजिक संस्था इन महत्वपूर्ण विषयों पर जनता का ध्यान आकर्षित नहीं कर पा रही है|
लेकिन २००७ में महानगर पालिका के चुनाव के बाद अविश्वसनिय तौर पर एक और नया चेहरा अचानक लोगों के सामने आया | २००९ में इस चेहरे ने एक मुख्य राष्ट्रीय पक्ष के बैनर द्वारा अपनी ताकत का प्रदर्शन किया, और इस प्रकार मिरा भाईंदर के चरित्र में एक और अस्तित्व की लडाई शुरू हुई क्योंकि इन्होंने भारतीय जनता पार्टी को उँचाईयों तक पहुँचाने में काफी हद तक सफलता पाई।
पिछले डेढ साल से सहकार भारती एकमात्र सामाजिक संस्था है, जो इस विषय पर लगातार काम करती आ रही है| कोई भी जागरुक नागरिक इस विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी वेब साइट में देख सकते है|
हम शासन को भी इस महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी हमारे लेख के माध्यम से पहुँचाना चाहते हैं| मिरा भाईंदर महानगरपालिका के आयुक्त से विनती है कि इस विषय पर अधिक गंभीरता पूर्वक विचार करें। महानगर पालिका के माध्यम से जनता को चेतावनी व जानकारी दें क्योंकि यह महानगरपालिका का कर्तव्य भी है और अधिकार भी है| जितनी भी इमारतों से महानगरपालिका द्वारा कर वसूल किए जाते है, उन सारी इमारतों की जाँच करके सभी आवश्यक कागजपत्रों का परिक्षण करें, और निश्चित करें कि किन इमारतों में आवश्यक कागजपत्रों का आभाव है| जिन - जिन इमारतों में जरूरी सरकारी कागज पत्र नहीं है उनका परिक्षण करके बडे पदाधिकारियों को सुचित करें|
इसका ताजा उदाहरण आज मिरा भाईंदर में मौजुद है, मिरा भाईंदर के रहिवासी सी – १०, शांती नगर, आकाश को. हॉ. सो. लि. के लोग आज रास्ते पर आ गये हैं इसका जिम्मेदार कौन है ? भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो इसलिए अभी से शासन और मकान मालिकों को इस विषय मे आवश्यक सतर्कता बरतनी होगी।
लेकिन किसी भी सरकारी अधिकारी को कानूनी तरीके से सौ प्रतिशत दोषी नहीं मान सकते है क्योंकि अधिकारी बदलते रहते हैं। इसलिए ज्यादातर बातों का जिम्मेदार पिडीत ही होते हैं। कानून के नजर में अन्य लोग भी दोषी होंगे लेकिन, उन सभी पहलूओं को जाँचना कई वर्षों तक सरकार के अलग – अलग दफतरों के द्वारा होने वाला है| इसलिए इन सभी बातों का यही निराकरण होगा कि मकान मालिक मकान खरिदने से पहले खुद ही जाँच पडताल करके सारी चीजों की जानकारी प्राप्त करने के बाद ही मकान खरिदने की सोचे सिर्फ भवन निर्माताओं के नाम को देख कर मकान न खरिदे, ऐसा करने से भविष्य में इत्यादी बातों से सुरक्षित रह सकेंगे।
जब एक भवन निर्माता, भवन निर्माण करता है, तो उसे विभिन्न प्रकार के विभागों से प्रमाण पत्र लेने पडते है। इसलिए आप एक अधिकारी को दोषी नहीं ठहरा सकते अगर शासन इन सारे चीजों को हर एक विभाग से प्रमाणपत्र पूरा होने के बाद ही भवन निर्माण शुरू करने का आदेश देती है तो किसी भी व्यक्ति को परेशानी नहीं होगी ९९ फिसदी भवन निर्माता शुरूवाती प्रमाणपत्र मिलते ही भवन बेचना शुरू कर देते है, क्योंकी वो भवन बनाते समय अपनी पूंजी ज्यादा न लगाते हुए मकान खरिदारों से पूंजी लेकर आगे का काम चलाते है, और इसलिए सारे लोग एक दूसरे के सहारे चलने लगते है।
भवन निर्माता पहले ही बुकींग राशि लेते है | बुकींग राशी देते ही खरिदार मकान खरिदने के लिए मजबूर हो जाते है, फिर खरिदार बैंको के पास कर्ज उठाने के लिए भागने लगते है| कुछ कागजों का अभाव होंने के कारण भी बैंक कुछ शर्तों पर कर्ज उठाकर निर्माता को खरिदार पूंजी देते है और जल्द से जल्द अपने मकान में रहने भी लगते है लेकिन जब अधिभोग प्रमाणपत्र देने का वक्त आता है तो प्रशासन अलग - अलग कागजपत्र में डाल देती है । इसी तरह ९५ फिसदी मिरा भाईंदर में होते आया है।
हमारा प्रशासन से यह सुझाव है की जो मकान खरिदार २० साल से जिस मकान में रहते है उन्हे अधिभोग प्रमाणपत्र देकर उनकी समस्याओं से मुक्ति दे| और हम मकान खरिदारों से यह भी कहना चाहते है की, मकान खरिदते समय सतकर्ता बरते, क्योंकी मिरा भाईंदर में ज्यादातर मध्यमवर्गीय लोग रहते है| उनके लिए अपने जीवनकाल में मकान खरिदना बहुत ही बडी बात होती है| जनता के दिलों से खिलवाड न करते हुए प्रशासन और भवन निर्माताओं से यही कहना है की अपने स्वार्थपूर्ण राजनीति से भवन खरिदारों को दूर रखे | और कोई ऐसा रास्ता बनाए जिससे, प्रशासन भवन निर्माता और मकान खरिदार ये तीनों को कम से कम परेशानी हो|
मिरा भाईंदर के फ्लैट खरीदार भी इस बात की जानकारी नहीं लेना चाहते है कि क्या उनके बिल्डींग को ओ.सी.मिला है या नहीं, यदि नहीं मिला है, तो किन कारणों के वजह से मनपा ने उनकी बिल्डिंग का ओं.सी. जारी नहीं किया है| इस संदर्भ में ऐसा प्रतीत होता है कि फ्लैट मालिको में जागरूकता का अभाव है, ओं.सी. न मिलने के लिए मनपा अधिकारी व भवन निर्माता के साथ - साथ फ्लैट मालिक भी जिम्मेदार है|
मिरा भाईंदर में लगभग ४,८०० रजि हाउसिंग सोसायटी द्वारा या उनके विरूध सहकारी न्यायालय में लगभग १५,००० मुकदमें चल रहे है| इन मुकदमों में अधिकतर हॉउसिंग सोसयटीयों के पास मनपा द्वारा जारी किए गए ओं.सी. नहीं है, फिर भी किस कायदे के तहत यह मुकदमें दायर किए गये है और कॉपरेटिव हॉ. सो. में किस धारा के तहत मुकदमें स्वीकॄत हुए है,
उपरोक्त मुकदमों में होने वाले हर प्रकार के खर्चो को कौन वहन करता है, शासन या कॉ.हॉ सो. यह भी जाँच का विषय है| सहकार न्यायालय, पोलिस स्टेशनों, जिला न्यायालय, उच्च न्यायालयों में स्वीकॄत मुकदमों के संदर्भ में यह बताना आवश्यक है कि इन मुकदमों को लडाने वाले शासकीय तंत्र एवं खर्चों का हिसाब किताब तो दूर की बात है, मूल कारण बिल्डींग का ओं.सी. है, यदि बगैर ओं.सी. प्राप्त की गई बिल्डिंगों का मुकदमा सहकारी न्यायालय व पोलिस स्टेशन में किस आधार पर मुकदमा दर्ज करती है, यह जाँच का विषय है|
. अवैध भवन निर्माता भी इस तथ्य से पूर्णतया वाकिफ होते है कि हमारे भवन को ओं.सी. मनपा द्वारा यदि नहीं भी दिया गया तो एक या दो वर्षों के अंदर उनके भवन को रजिस्ट्रार द्वारा कॉ.हॉ.सो.लि. बना दिया जाएगा । इन भवन निर्माताओं द्वारा निर्मित्त भवनों, के फ्लैट मालिक भी निश्चित रहते है कि यदि एक बार हमारे भवन, कॉ.हॉ. सो. लि. बन जाए तो उसके बाद सहकारी न्यायालय का रास्ता खुल जाएगा उसके बाद तो जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय का रास्ता खुदब खुद मिलने लगता है।
मनपा प्रशासन को, फ्लैट मालिकों को ओंसी. देने की प्रक्रिया के विषय में जागरूकता लाने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए, जिससे कि सहकारी न्यायालय, पोलिस स्टेशन एवं अन्य न्यायलयों में अवैध भवनों के निर्माण के विषय पर मुकदमा दर्ज या स्वीकॄत न हो| इससे शासन के खर्चें एवं शासकीय तंत्रो का नुकसान बचाया जा सके।
महाराष्ट्र के सम्मा. राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विपक्ष नेता, व अन्य सभी राष्ट्रीय पक्ष के नेतागण और सभी मंत्रीयों से निवेदन यह हैं कि इस महत्वपूर्ण विषय की और गंभीरता पूर्वक ध्यान दे और साथ ही मिरा भाईंदर के लिए कायदेनुसार एक नई योजना का निर्माण करे जिससे की यहा जितने भी गैरकानूनी इमारते है उन्हे कानून के घेरे मे लाया जा सके| जिससे की यहा के रहिवासी शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें| ताकी भविष्य में फिर से आगे कोई भी विकासक गलत तरीके से अपने विकास को बढावा न दे सकें।
मिरा भाईंदर की समस्यायों भाग २
सन २००० के शुरूआत में ही मिरा भाईंदर पुनः एक बार इतिहास दौहराने की तैयारी कर रहा था इसी क्रम में इस शहर ने एक नये तरह के राजनेता को उभरने का मौका दिया, जिसने पूर्व के सभी राजनेताओं को नये राजनिति का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया। एक बार फिर मिरा भाईंदर के नागरिक अपने आप को ठगे जाने के लिए तैयार हो गये, शहर के नागरिकों को छलें जाने का शंखनाद हो चुका था। इस शहर में राजनितिक रोटी सेकने वाले नेताओं को यह भान नहीं हो पाया कि कालांतर में यह व्यक्ति इस शहर को किस दिशा में मोड़ेगा।
अपने शहर के महाराष्ट्र सरकार द्धारा सन २००२ में महानगरपालिका क्षेत्र का दर्जा दिया गया। महानगरपालिका दर्जा प्राप्त होने के बाद यहाँ के भ्रष्ट अधिकारीयों तथा राजनेताओं ने नागरिकसेवा के रूप में यहाँ के नागरिकों को सुविधा तो मुहैया नहीं करवाई लेकिन मिरा भाईंदर की जनता पर लगने वाले पुराने टैक्स में वृद्धि जरूर कर दी।
२००७ में दो निर्दलीय नगरसेवकों ने महापौर पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हुए एक निर्दलीय नगरसेवक महापौर बन गया, इसखेल में कई राजनितिक पार्टीयों ने इनकी मदद की। उसके बाद तो शहर के इस महापौर ने अपने कार्याकाल में अवैध निर्माणों को फलने फुलने को सुनहरा मौका प्रदान किया तथा मिरा भाईंदर शहर को टी.डी.आर के लिए मोहताज कर दिया। इस शख्स ने फिर एक राजनितिक पार्टी का सहारा लेते हुए जिलाध्यक्ष भी बन गया।
सन २००९ में पुनः महाराष्ट्र सरकार ने मिरा भाईंदर वासियों को इस क्षेत्र से दो आमदार चुनने का मौका दिया। शहर के तमाम बड़े एवं दिग्गज नेताओं ने अपने अपने टिकट एवं गठ बंधन की स्थिती में अपनी पार्टी के लिए दिल्ली दौड़ शुरू कर दिया। मिरा भाईंदर शहर के तत्कालीन महापौर को भी एक राजनितिक पार्टी ने अपने नियम या विचारधारा के विपरित हुए टिकट दिया, किंतु २००९ के विधानसभा चुनाव में मिरा भाईंदर के तत्कालिन महापौर को शहर की जनताने नकार दिया।
सत्ता के इस खेल में मिरा भाईंदर कि जनता को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है? इस सवाल का बेहतर जवाब इन सत्ता के दलालों के अलावा किसी के पास नहीं हो सकता हैं, क्योंकि किसी भी राजनितिक पार्टी ने मिरा भाईंदर शहर की आम जनता के मकानों की समस्या के तरफ ध्यान देना उचित नहीं समझा है, यह अलग बात है कि यहाँ के नेताओं ने नाले, सड़कों एवं फुटपाथ पर टाइल्स लगवाने का कार्य जरूर किया एवं इस बात के श्रेय लेने के लिए पोस्टर / बैनर इत्यादी लगवाते है।
मिरा भाईंदर के नागरिकों को यह समझ में नहीं आता है कि, क्यों एक नगरसेवक/आमदार को उनका जन्मदिन याद रहता है लेकिन उनके क्षेत्र में गिरी हुई इमारतों की तारिख का ध्यान नहीं रहता? यदी उन्हे क्षतिग्रस्त इमारतों के तारिखों का ध्यान रहता तो वह जरूर अपने क्षेत्रों के गिरे हुए / क्षतिग्रस्त इमारतों के पुर्ननिर्माण हेतू प्रयास काभी बखान पोस्टरों या बैनरों द्वारा जरूर करते।
मिरा भाईंदर शहर में कम से कम १० को.ओ.हॉ. सोसाइटियों को मिरा भाईंदर महानगर पालिका ने “धोकादायक” घोषित किया था, लेकिन म.न.पा. के भ्रष्ट अधिकारियों तथा भ्रष्ट नगरसेवकों ने इन सोसाइटियों के पुर्ननिर्माण हेतू तमाम अडंगे लगाने में अपनी तत्परता दिखाते समय यहाँ की जनता को यह बताया कि हम लोग नियम के अनुसार ही कार्य करते हैं। जबकि मिरा भाईंदर महानगर पालिका के व्यापक भ्रष्ट्राचार का उदाहरण इस शहर के कई स्कूलों एवं अस्पतालों के निर्माण के रूप में देखा जा सकता है।
मिरा भाईंदर शहर की आबादी भी दिनों - दिन बढ़ती जा रही है, इस बढ़ती हुई आबादी एवं नये लोगों के विशाल जन समूह के कुछ वर्गों एवं एक धर्म विशेष के वोटरों ने सन २०१४ के विधानसभा चुनाव में इस शहर के एक राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार को जितवाने में अहम भुमिका निभाई। इस शहर के सड़कों एवं नालों के निर्माण के समय महानगर पालिका के भ्रष्ट अधिकारीयों के साथ मिल कर यहाँ के भ्रष्ट नेताओं ने अपने-अपने घरों एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को बचाने में कामयाब रहे। सरकारी अधिकारियों के साथ नेताओं का भी भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा देने का एक नया किर्तीमान स्थापित हो गया।
मिरा भाईंदर शहर में स्कूलों की कमी का कुछ लोगों ने भरपूर फायदा उठाते हुए विधालय के नाम पर दुकानदारी शुरू कर दी। बाद में कुछ नामी - गिरामी बिल्डरों के साथ - साथ छुटभैये बिल्डरों एवं नेताओं ने इसे रोजगार के रूप में देखना शुरू किया जबकि यहाँ के नागरिकों के पास शिक्षा के गुणवत्ता मापने का कोई पैमाना नहीं था। धीरे-धीरे इस शहर में स्तरहीन शिक्षा के विद्यालयों का उदय होने लगा।
शिक्षा माफिया अपने विद्यालयों के विद्यार्थियों के प्रतिभाओं से भलि-भांति परिचित थे इस लिए उन्होंने महाविद्यालयों तक की स्थापना कर डाली ,यह बात और है कि कुछ लोगों ने अभियंत्रिकी महाविद्यालयों भी शुरू किए ताकि समय के साथ दौड में बने रहें।
महानगरपालिका का दर्जा प्राप्त होने तक इस शहर में गिनती के बार, डाँस बार तथा लॉजिंग बोर्डिंग थे, लेकिन इस खेल के महान खिलाड़ियों ने भी मिरा भाईंदर महानग पालिका में फैले व्यापक भ्रष्टाचार का भरपूर फायदा उठाते हुए इस शहर को बार, डाँस बार एवं लॉजिंग बोर्डिंग का अड्डा बना दिया, इन व्यवसायियों को स्थानिय राजनेताओं, म.न.पा. एवं पुलिस के भ्रष्ट अधिकारीयों का भी संरक्षण प्राप्त है।
मिरा भाईंदर मुंबई से सटे होने के कारण यहाँ कुछ ऐसे भवन निर्माता भी आए जो मिरा भाईंदर महानगर पालिका के नगर रचना विभाग से कार्य शुरू करने का आदेश / प्रमाण पत्र मिलने के पहले ही भवन को तैयार कर लेते थे क्योंकि अधिकारी एवं राजनेता भी निर्माण कार्य में सहभागी थे।
इस शहर ने अनोखे - अनोखे किर्तिमान स्थापित किए हैं उदाहरणार्थ समाचार पत्र के संपादक बनना, पत्रकार, शाखा प्रमुख, नगरसेवक एवं इस्टेट एजंट से बिल्डर बनना तथा आठवी पास होकर महाविद्यालयों के संस्थापक बनना इत्यादी।
इस शहर के बढ़ती आबादी को देखकर या ध्यान में रखते हुए यहाँ विद्यालय , बार, डाँस बार एवं लॉजिंग बोर्डिंग व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि नब्बे के शुरूआत में सरकारी आंकडों के अनुसार यहाँ की आबादी ३ लाख थी, नब्बे के अंत तक में लगभग सात लाख तक पहुँच गई थी जो आज लगभग १२ लाख के आस पास हो गई है।
मिरा भाईंदर शहर में जमीन मालिकों एवं भवन निर्माताओं ने मिलकर एक नए खेल की शुरूआत कर दी, जिसे फ्लैट खरीदारों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कुछ नामचीन भवन निर्माताओं के भवनों को तोड़ा गया जबकि इन भवनों में रहने वाले लोगों ने महाराष्ट्र सरकार को स्टैंप ड्यूटी एवं रजिश्ट्रेशन के रूप में लाखों रूपये अदा किए थे। आश्चर्य की बात यह है कि फ्लैट धारकों को मुसीबत में डालने वाले जमीन मालिक, भवन निर्माताओं एवं म.न.पा. तथा महाराष्ट्र शासन के किसी भी अधिकारीयों पर किसी तरह की आर्थिक या कानुनी कारवाई नहीं की गई।
इस शहर के अधिकांश जमीनों के मुल मालिकों का भवन निर्माताओं से किसी न किसी कारण वश कानुनी मुकदमे चल रहे है,जमीन मालिकों को भवन निर्माताओं द्वारा भुगतान नहीं करना तथा फर्जी तरीके से ७/१२ से मुल मालिक का नाम हटाकर अपने या अपने पसंदीदा व्यक्ति के नाम को चढ़वाना इसका मुख्य कारणों मे से एक है। इस खेल को स्थानिय राजनेताओं, महाराष्ट्र शासन एवं मिरा भाईंदर महानगरपालिका के भ्रष्ट अधिकारीयों ने मिलकर फलने-फुलने का मौका दिया है। इस वजह से मिरा भाईंदर महानगरपालिका क्षेत्र के लगभग ६ हजार मुकदमें निचली अदालतों से लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने वर्षों से लंबित है एवं जमीन के मुल मालिकों को अपने एवं अपने परिवार के भरण पोषण हेतू इन भ्रष्ट भवन निर्माताओं (अवैध निर्माण) के यहाँ वाचमैन,सफाई कर्मचारी, घरों में चौकीदार एवं घरकाम करना पडता है, जबकि भवन निर्माताओं , म.न.पा. तथा महाराष्ट्र शासन के भ्रष्ट अधिकारी करोंडों रूपयों की कमाई कर लेते है।
आने वाले समय में देश केचर्चित “कैंपा कोला सोसाइटी” जैसी घटना मिरा भाईंदर शहर में ही दुहराई जाएगी।
भाग - ३
वर्ष २०१४ से लेकर २०१६ तक इस शहर के विकास कार्यों (जैसे सडक, नाले, पार्क, सामुदायिक भवन, स्पोर्टस कॉम्पलेक्स इत्यादी) को भरपूर तेजी से किया गया, लेकिन जैसे-जैसे २०१७ के मिरा भाईंदर महानगरपालिका चुनाव का समय नजदीक आता गया, विपक्षो दलों द्धारा सत्ता पक्ष के आमदार के विरुद्ध अपनी मोहिम तेज कर दी गई और उनके खिलाफ कई तरह के मुकदमों, महानगर पालिका द्धारा आरक्षित प्लॉटों के आँवटन में धांधली टी.डी.आर घोटला एवं अन्य आरोपों को उजागर किया तथा शहर की जनता को भी इससे अवगत करवाया, किंतु सत्ता पक्ष के आमदार ने महानगरपालिका चुनाव में एक तरफा जीत हासिल करते हुए सभी विपक्षी दलों के सामने एक नई चुनौती खडी कर दी।
२०१७ महानगरपालिका चुनाव में सत्ता पक्ष ने महानगर चुनाव की उम्मीदवारों का नाम तय करते समय भारतीय जनता पार्टी के कई कार्यकर्ताओं, संघ के लोगों एवं अन्य वरिष्टों के अनुशंसाओं को दरकिनार करते हुए सिर्फ अपने चहेतों को ही उम्मीदवार बनाया था इस कारण मिरा भाईंदर शहर की जनता अब सत्ता पक्ष को भी परिवारवाद एवं व्यक्तिवाद को बढावा देने वाली पार्टी के रुप में पहचनने लगी है।
एक बार फिर मिरा भाईंदर शहर की जनता अपने आप को लाचार एवं बेवस इंसान के रुप में पाया क्योंकि सत्तापक्ष के नगरसेवक स्थानीय महानगर पालिका में भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर पुरानी घटनाओं के पुर्नावृति में लग गए उदाहरणार्थ मिरा रोड के शांतिनगर ले आउट में आरक्षित भूखंडों पर अवैध रुप से निर्माण कार्य करवाने में अहम भूमिका निभाई इस संदर्भ में मनपा एवं डेव्हलपर्स के विरुद्ध राजेश वडीलाल शाह (शांतिनगर ले आउट के पट्टा धारक) ने न्यायपालिका में मुकदमा भी दर्ज कराया है, वर्तमान समय में मिरा भाईंदर महानगरपालिका में सत्ता पक्ष के नगरसेवकों एवं राजनेताओं को भारतीय जनता पार्टी के मूल्यों, विचारों एवं कार्यशैली की जानकारी ही नहीं है। इमानदार अधिकारियों द्वारा अवैध निर्माण के विरुद्ध कानुनी प्रक्रिया के तहत कार्यवाही करने के कारण सत्ता पक्ष के नगरसेवकों ने मनपा सदन में ताला तक लगा दिये, आम जनता को होने वाली परेशानियों को सत्ता पक्ष के नगरसेवकों ने ध्यान में नहीं रखा (सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत फायदे के लिए सत्ता पक्ष के नगरसेवकों ने मिरा भाईंदर महानगर पालिका के सदन को ताला लगाया था), क्योंकि उन्हें ऐसा अधिकारी चाहिए था, जो उनके (सत्तापक्ष) अनुसार कार्य करे और कायदे कानून को ताक पर रख कर भ्रष्टाचार को बढावा दे या भ्रष्टाचार के गंदे खेल में उनका साथ देने वाला हो।
मिरा भाईंदर शहर के नागरिकों के सामने प्रतिदिन एक नई समस्या खडी होती रहती है, जिसके निवारण के लिए हमारे शहर के नगरसेवक या राजनेता ने पहल करने की या कारगर उपाय ढूढने की आवश्यकताओं को तरजीह नहीं देते हैं।
केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा चलाये जाने वाले जन लाभकारी योजनाओं की जानकारी भी आम जनता तक पहुँचाने में असफल रहे हैं।
इस शहर की जनता ने वर्ष २०१४ में जिस विश्वास के साथ एक राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार को महाराष्ट्र के विधान सभा में भेजा था, २०१९ के विधान सभा में यहाँ की जनता का निर्णय या विश्वास किस प्रकार का होगा यह विचारनीय है, क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में सत्ता पक्ष के पूर्व महापौर मिरा भाईंदर महानगरपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अंधे कानुन के विरुद्ध अपना मुहिम चला रही हैं। हाल ही में उनहोंने प्रेस विज्ञप्ति द्वारा शहर की जनता को यह संदेश दिया कि मैंने राजनीति को सेवा भाव के लिए चुना है, मैं एक सफल व्यवसायी परिवार की सदस्य हुँ एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध माननीय प्रधानमंत्री तथा माननीय मुख्यमंत्री के पदचिन्हों का अनुसरण और सबका साथ सबका विकास में ही पूर्ण विश्वास करती हुँ । सत्ता पक्ष के पूर्व महापौर ने शहर की जनता को यह भी विश्वास दिलाया कि जन सेवा की भावना मैंने अपने परिवार से सीखा है, मेरे महापौर कार्यकाल के दौरान मैंने या मेरे परिवार के किसी सदस्यों ने अवैध निर्माण कार्य या भ्रष्टाचार को बढावा नहीं दिया ।
मेरी जानकारी के अनुसार सत्ता पक्ष की पूर्व महापौर से सभी विपक्षी दलों के वरिष्टों ने अपने अपने दलों में शामिल होने का आग्रह भी किया है।
सहकार भारती मिरा भाईंदर महानगर इस शहर के सभी गृह निर्माण संस्थाओं से निवेदन करती है कि माननीय मुख्यमंत्री द्वारा घोषित सेल्फ रिडेव्हलपमेंट के लिए तैयार रहें, सहकार भारती सदैव आपकी सहायता के लिए तत्पर है।
किसी भी गृहनिर्माण संस्था के पुर्नविकास हेतू विकासक की आवश्यक्ता होती है।
हॉउसिंग सोसायटी के सदस्यों द्वारा विकासक की नियुक्ति की जाती है, नियुक्ति होने तक विकासक सोसायटी के कुछ सदस्यों को अपने विश्वास में लेने का हर संभव प्रयास करते हुए उन्हें पूर्णत: किसी न निसी तरीके से अपने विश्वास में ले लेता है एवं हाउसिंग सोसायटी के सदस्यों द्धारा परिसर को पुरी तरह खाली करवा कर इमारत को गिरवा देता है। हाउसिंग सोसायटी द्धारा नियुक्ति पत्र लेने के बाद विकासक सदस्यों से कई प्रकार के कागजातों की माँग करता है, कागजात उपलब्ध न होने का बहाना बनाते हुए विकासक उस हाउसिंग सोसायटी के सदस्यों से मिलना या बात-चीत करना भी बंद कर देता है। ऐसी परिस्थिति में हाउसिंग सोसायटी के सदस्य (जिन्होंने अपना घर खाली कर दिया था) स्थानीय नेताओं के कार्यालयों का चक्कर लगाते हैं अंतत: थक हार कर माननीय न्यायलय की शरण में जाते है (जहाँ इस प्रकार के अनेकों मुकदमें लंबित हैं), वहाँ भी उन्हें ४-५ वर्षों तक का समय लग जाता है, इस बीच विकासक या हाउसिंग सोसायटी के कुछ सदस्यों की मृत्यु भी हो जाती है, इन सभी बातों को ध्यान में रखकर “सहकार भारती” ने माननीय शहरी विकास मंत्री भारत सरकार तथा महाराष्ट्र सरकार और माननीय प्रधान मंत्री एवं मुख्य मंत्री के पास गुहार लगाई, तथा उन्हें यह सुझाव दिया कि आप ऐसी स्कीम बनाएँ जिससे गृह निर्माण संस्था को किसी विकासक के पास अपना घर बनाने हेतू चप्पल घिसने न पडे। “सहकार भारती” की इस सुझाव को मानते हुए माननीय मुख्यमंत्री महाराष्ट्र सरकार ने “सेल्फ डेव्हलापमेंट” नामक स्कीम की घोषणा की।
सेल्फ डेव्हलपमेंट के फायदे :-
१) गृह निर्माण संस्थाओं/ हॉउसिंग सोसायटियों को किसी भी विकासक , सरकारी कार्यालयों, दलालों एवं राजनेताओं के आगे हाथ फैलाने की आवश्यक्ता नहीं होगी।
२) कम से कम २५ से ३० प्रतिशत अतिरिक्त चटाई क्षेत्र (कारपेट एरीया) सभी सदस्यों को मिल सकता है, जबकि विकासक आपको मिलने वाले अतिरिक्त क्षेत्र को चटाई क्षेत्र के रुप में नहीं दे कर सुपर बिल्टअप क्षेत्र के रुप में देता है।
३) वर्तमान फ्लैट मालिकों एवं दुकान मालिकों को कार पार्किगं मुफ्त मिल सकता है, क्योंकि आने वाले समय में आप अपनी गाडियों को सडक पर पार्क नहीं कर सकते हैं।
४) वर्तमान फ्लैट मालिकों एवं दुकान मालिकों का आजीवन सोसायटी मेन्टेंस चार्ज फ्री हो जाएगा।
५) सोलर एनर्जी द्वारा गर्म पानी की व्यवस्था सभी फ्लैटों में की जा सकती है।
६) लिफ्ट अच्छे कंपनी की लगा सकते है।
७) दो वर्ष की रेंट एवं सामान सिफ्टिंग की भुगतान प्राप्त होगी।
८) रेन वाटर हारवेस्टींग की व्यवस्था कर सकते है, जिससे आपके सोसायटी को पानी की समस्या से पूर्णत: निजात मिल सकती है।
९) सी.सी.टीवी लगा सकते है, जिससे सोसायटी परिसर में आपका परिवार पूर्ण रुप से सुरक्षित रहे ।
१०) अच्छे सुरक्षागार्डों की व्यवस्था कर सकतें है, जिससे कोई भी बहारी व्यक्ति, सदस्यों के अनुमति के बगैर आपके परिसर में दाखिल न हो सके।
११) निर्माण कार्य L&T जैसे विश्वसनीय एवं मानक कंपनीयों द्धारा करवाया जा सकता है, क्योंकि अधिकांशत: विकासकों के मालिक / पार्टनर / डायरेक्टर की शैक्षणिक योग्यता शुन्य के बराबर है।
१२) घन कचरे के Recycling हेतू मशीन लगा कर अपने परिसर को स्वच्छ रख सकते है एवं इस के बाय प्रोडक्स को बेच कर सोसायटी के कैपिटल बैलेंस को बढा सकते है।
१३) C.C. आने तक आपको अपने फ्लैट एवं दुकान खाली करने की आवश्यक्ता नहीं होगी, जबकि विकासक आपके सोसायटी परिसर को एक वर्ष पहले ही खाली करवा लेता है।
१४) विकासक द्वारा होने वाले किसी प्रकार के धोखाधडी से पूर्ण मुक्ति हो सकती है, क्योंकि विकासक अत्यअधिक मुनाफा के लालच में अपने फ्लैटों को उँचे दर पर बेचना चाहता है इसलिए पूर्न विकास कार्य में देरी होती है इसका उदाहरण आप सभी मुंबई के S. R. A. प्रोजेक्टस के रुप में देख सकते हैं।
१५) फ्लैट मालिकों एवं दुकान मालिकों को अपने फ्लैट एवं दुकान में स्वयं के सुविधा अनुसार कार्य करवा सकते हैं। उदाहरणार्थ बिजली के स्विचों , पी. ओ.पी. कार्य, बाथरुम के फिटिंग, फ्लोरिंग टाईल्स, दीवारों के रंगरोगन इत्यादी कार्यों को अपने मनपंसद तरीके से करवा सकते हैं जबकि विकासक सभी फ्लैटों एवं दुकानों में अपने कमाई के लिए सस्ते मटिरियल और रंगों का उपयोग करते हैं। आपके घरों एवं दुकानों में लिकेज की समस्या को विकासक रोक नहीं पाता है क्योंकि विकासक खुद खडे रह कर बाथरुम फिटिंग्स के कार्य को नहीं करवाता है।
१६) निर्माण कार्य में लगने वाले धन राशि के लिए सहकार भारती मिरा भाईंदर शहर जिला, गृह निर्माण संस्थाओं को मिलने हेतु कानूनी रुप से सहयोग करेगी ।
१७) आर्किटेक्ट , इंजिनीयर, स्ट्रक्चरल इंजिनीयर, अधिवक्ता, बैंकिंग विशेषज्ञ एवं निर्माण कार्य के जानकारों की सहायता सहकार भारती मिरा भाईंदर शहर जिला, गृह निर्माण संस्थाओं को मुहैया करएगी ।
१८) Estate Investment Company से N.O.C. लेने में सहकार भारती मिरा भाईंदर शहर जिला, गृहनिर्माण संस्थाओं को सहायता करेगी ।
१९) गृहनिर्माण संस्था एवं विकासक के बीच मुकदमेबाजी से बचाव ।
२०) नए नियमानुसार गृह निर्माण संस्था सेल्फ डेव्हलपमेंट स्कीम के अंतर्गत अपने परिसर में ३५ से ४० प्रतिशत तक व्यवसायिक क्षेत्र का निर्माण कर सकती है।
राजन वासु नायर
संजय उपेन्द्र नाथ सिंह
हॉउसिंग सोसायटीयों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी एवं आवश्यक नियमावली
१). यदि कोई दुकान/फ्लैट ५ वर्षों से अधिक समय तक बंद रहता है तो सोसायटी स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराये, पुलिस की जाँच के बाद सोसायटी उस दुकान/ फ्लैट की नीलामी कर सकता है, सोसायटी के सभी बकाया राशियों का भुगतान करने के बाद बाकी बचे हुए पैसों को सोसायटी के रिजर्व फंड में जमा किया जाएगा। यदि सोसायटी सरकारी जमीन पर बनी है तो इस दुकान/फ्लैट को डायरेक्टर ऑफ अकोमोडेशन के पास जमा करवानी होगी ।
२). बगैर ओ.सी. के भी डीम्ड कॉनवेंस हो सकता है।
३). सोसायटी रजीस्ट्रेशन के समय ओ.सी. आवश्यक है।
४). कानूनी प्रक्रिया पूर्ण करते हुए ओ.सी. प्राप्त किया जा सकता है ।
५). कॉनवेंस हेतु:-
(अ). ७/१२ मालिक के स्वीकृती द्धारा लेना आसान है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार द्धारा जारी रेडी रेकनर के अनुसार ६+१(७%) टैक्स/स्टैम्प डीयुटी जमा करना होगा।
(ब). ७/१२ मालिका या डेवल्पर्स के स्वीकृति उपलब्ध नहीं होने पर सोसायटी को डीम्ड कॉनवेंस करना चाहिए । वर्तमान परिस्थिति में (oct 2018) डीम्ड कॉनवेंस के लिए आवश्यक सभी शासकीय राशि के भुगतान हेतु हर फ्लैट / दुकान मालिक को ७००/- जमा करवाना है, भविष्य में शासकीय कानून में बदलाव होने पर ७००/- प्रति फ्लैट / दुकान की रशि में बदलाव हो सकती है।
(क). कॉनवेंस हेतु राजस्व विभाग के बकाया राशियों का भुगतान को करवाना अनिवार्य है।
(ड). सरकारी जमीन पर बनी सभी इमारतों के कॉनवेंस हेतु जिलाधिकारी का Noc अनिवार्य है।
६). प्रतिमाह सोसायटी के रख रखाव में होने वाले खर्चों को ( सिंकिग फंड ०.२५ एवं ०.७५ बिल्डिंग) सोसायटी के सभी फ्लैटों/ दुकानों में बराबर भाग दिया जाता है, किसी फ्लैट / दुकान का भुगतान तीन महीने तक नहीं होने पर सोसायटी उस दुकान /फ्लैट के मालिक को नोटिस देगी, छ: महीने तक भुगतान नहीं करने पर वकील की एवं एक वर्ष की अदधितक भुगतान नहीं करने की स्थिति में सोसायटी उपनिंबधक द्धारा धारा १०१ के तहत नोटीस दे कर विशेष रिकवरी अधिकारी की नियुक्ती करवाते हुए दुकान / फ्लैट को जप्त कर निलामी कर सकती है एवं सभी प्रकार के बकाया राशि का भरपाई कर सकती है,
७). सोसायटी के सदस्यों एवं मैंनेजिंग कमीटि के बीच आपसी रंजिश के कारण रजिस्ट्रार प्रशासक नियुक्त करता है, ऐसे में हम सभी सदस्यों की नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने सोसायटी में आपसी रंजिश या अहम को त्याग कर सहकार भाव से कार्य करें। फिर भी यदि किसी कारवश रजिस्ट्रार को प्रशासक नियुक्त करने की नौबत आती है तो, प्रशासक की जिम्मेदारी होती है कि तीन से छ: महीनों के अंदर सोसायटी के सभी गल्तियों को दुरुस्त करते हुए चुनाव कराकर नए कमीटि की गठन करे एवं उन्हें चार्ज सुपुर्द करे, यदि छ: महीनों के बाद भी प्रशासक नए कमीटि का गठन नहीं कराता है तो ऐसी स्थिति में सोसायटी के सदस्य डी.डी.आर. के पास अपने कामकाज हेतु संपर्क कर सकते हैं। चूंकि ७३/अ कानून के तहत किसी भी परिस्थिति में एक वर्ष से अधिक प्रशासक की नियुक्ति नहीं हो सकती हैं। सदस्य विभागीय सह निबंधक एवं सहकार चुनाव आयुक्त के पास अपील कर सकती है, सह निबंधक एवं सहकार चुनाव आयुक्त के पास भी सुनवाई नहीं होने पर ९१ धारा के तहत सोसायटी के सदस्य, सहकार आयुक्त के पास भी अपील कर सकते हैं।
सोसायटी के परिचालन हेतु आवश्क कानूनी सुझाव
१. को.ओ.हौ. सोसायटी में ज्यादातर मुकदमें मासिक रखरखाव बिल के जमा नहीं करने या अधिक होने कारण विवाद होते हैं, सोसायटी Bye Laws के कानून के अनुसार सदस्यों को मासिक रखरखाव बिल का भुगतान करना होता है, उच्चन्यायालय के फैसले के अनुसार मासिक रखरखाव बिल का भुगतान नहीं करने वाले सदस्यों के सोसायटी द्वारा दी जा रही सुविधाओं को बंध कर सकती है।
२. विशेष वसुली अधिकारी की नियुक्ति सोसायटी के अनुरोध करने पर रजिस्ट्रार द्वारा की जा सकती है।
३. सोसायटी को सदस्यों के वोटिंग अधिकार, दोषिओं की सुची, निर्वाचन हेतु उचित श्रेणी के नामांकन के व्यवस्था, मतपत्र राष्ट्रभाषा एवं स्थानीय भाषा में होना चाहिए|
४. कमिटी के सदस्यों द्वारा रखरखाव खर्चे को लेकर एवं पद के दुरुपयोग के कारण विवाद होता है, इसलिए कमिटी के सदस्यों को खर्चों पर नियंत्रण रखते हुए अपने पदों का दुरुपयोग भी नहीं करना चाहिए ।
५. पार्किंग के संदर्भ में माननीय उच्चन्यायालय के आदेशानुसार सदस्यों के वरीयतानुसार प्रति फ्लैट एक स्टिल्ट पार्किंग की उपलब्धता के अनुसार होना चाहिए।
६. अन्य सुविधाओं के चार्जेज का भी विवाद रहता है।
७. स्थानांतरण शुल्क के संदर्भ में सरकार ने अधिकतम राशि २५००० रुपये का प्रावधान किया है इससे अधिक राशि की माँग सोसायटी द्वारा नहीं की जा सकती है ।
८. भाडोत्री की समस्या हेतु सदस्यों द्धारा अपने फ्लैट/दुकान को भाडे पर देते समय भाडोत्री का स्थानीय पुलिस स्टेशन के N.O.C. एवं K.Y.C. को सोसायटी कार्यालय में अवश्य जमा कराऐं।
९. फ्लैट/दुकान को भाडे पर देने के पहले सभी देय राशि जमा होना चाहिए।
१०. यदि फ्लैट/दुकान में विदेशी नागरिक भाडोत्री के रुप में रह रहा है या रहने वाला है उस परिस्थिति में विदेशी नागरिक के पासपोर्ट की छाया प्रति सोसायटी कार्यालय में जमा होना चाहिए।
११. कचरों के व्यवस्थापन हेतु गिले एवं सुखे कचरों के रखने की व्यवस्था अलग अलग होनी चाहिए।
१२. बारिश के पानी को जमा करने एवं सौर्य उर्जा की व्यवस्था सोसायटी के सदस्यों को करनी चाहिए, हालाकि दोनों कामों में एक मुश्त खर्च होती है इस वजह से कई सदस्यों द्धारा विरोध भी होता है किंतु लंबे समय तक यह फायदेमंद रहता है।
१३. नए सदस्यों का नाम तीन महीनों के अंदर सोसायटी को स्वीकार करना चाहिए अन्यथा उपनिबंधक उसे माना हुआ सदस्यता दे सकता है।
१४. सोसायटी का ऑडिट समय पर होना चाहिए, सोसायटी के खाते एवं लेखाजोखा व्यवस्थित नहीं होने के कारण विवाद होता है, अत: सोसायटीयों के पदधिकारीओं एवं कमिटी के सदस्यों को सोसायटी के खातों एवं लेखाजोखा को व्यवस्थित रखना चाहिए।
विनायक रामचंद्र साखरे – लेखक
पूर्व विभागीय उपनिबंधक (हॉउसिंग), मुंबई डिविजन
संजय उपेंद्र्नाथ सिंह – अनुवादक
सचिव, सहकार भारती मिरा भायंदर शहर जिला
सिवील इंजीनियर
भाग – ४
मिरा भाईंदर शहर की जनता ने सत्ता के नए समीकरण तलाशने की पहल के रुप में पुर्व महापौर श्रीमति गीता जैन के विचारों से अपनी सहमति दिखा रही थी लेकिन तत्कालीन आमदार ने अपने चहेते नगरसेवकों द्वारा जनता एवं सत्ता पक्ष के अन्य नगरसेवकों में भरम की स्थिति पैदा करने में अपनी रुचि दिखाते हुए, चुनावी वर्ष २०१९ के शुरुआत से ही पुर्व महापौर को मनपा या पार्टी के कार्यक्रमों में नजरअंदाज करने या सम्मान नहीं देने जैसे कार्यों को अमल में लाया। जिससे पुर्व महापौर को इस शहर की जनता का सहानूभूति मिलने लगा लेकिन मंजिल काफी दूर थी, उनके विधानसभा तक पहुँचने का मार्ग को तत्कालीन आमदार ने अपने हर संभव प्रयास से अवरुध्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
एक तरफ जहाँ पुर्व महापौर अपने स्तर पर पार्टी के लिए कार्य कर रही थी तो दूसरी तरफ तत्कालीन आमदार अपनेपद का दुरुपयोग करते हुए व्यक्तिगत फायदे लेने में लगे थे, मिरा भाईंदर शहर की जनता यह सब अपने आँखों से देख रही थी, लेकिन तत्कालीन आमदार के समक्ष आम जनता की हैसियत शुन्य थी क्योंकि उनके पास धनबल, बाहुबल एवं सत्ताबल था।
जैसे-जैसे लोकसभा २०१९ का चुनाव नजदीक आता जा रहा था वैसे-वैसे पुर्व महापौर एवं तत्कालीन आमदार अपने स्तर पर केंद्र में माननीय मोदी जी के नेतृत्व वाले, गठबंधन के उम्मीदवार को विजयी करने के लिए सोसायटीयों एवं नुक्कडों पर सभाएँ करने लगे तथा समाज के सभी वर्गों के लोगों से व्यक्तिगत मुलाकात का सिलसिला भी चालू रखा। नतीजा बेहद चौंकानेवाला था, गठबंधन के उम्मीदवार पुन: एक बार यहाँ जनता ने भारी मतों से विजय दिलाई, जबकि तमाम सर्वे यह बता रही थी कि ठाणे लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल के नेता जीतेंगे।
जून २०१९ के अंत तक मिरा भाईंदर शहर जनता पुर्णत: असमंजस में आ गई क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि तत्कालीन आमदार को भाजपा का टिकट मिलने पर पुर्व महापौर का रुख क्या होगा? क्या पुर्व महापौर भाजपा छोड़ देगी?
इस असमंजस की स्थिति में भी पुर्व महापौर ने अपना धैर्य नहीं खोया एवं भाजपा के हित के लिए कार्य करती रही, उनका यहाँ की जनता से मिलने का कार्यक्रम पुर्ववत चलता रहा, इसी घटनाक्रम में पुर्व महापौर से उनके ही पार्टी की नगरसेविका द्वारा एक कार्यक्रम में बदसलुकी भी हुई। मिरा भाईंदर शहर की पहली शर्मनाक घटना थी।
किंतू उसके बाद तो तत्कलीन आमदार के चहेतों ने तो पुर्व महापौर पर भद्दे, अश्लील एवं तर्कहीन कॉमेंटो का दौर ही शुरु कर दिया। लेकिन एक बात बहुत ही अफसोसजनक थी कि इस पूरे प्रकरण में भाजपा अध्यक्ष ने पुर्णत: मौन धारण कर रखा था।
दोनों नेता २०१९ के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी-अपनी दावेदारी ठोंक दी, दिल्ली का दौड़ा शुरु हो गया, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों तथा प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात का दौड़ भी चलता रहा।
एक ओर जहाँ पुर्व महापौर को संघ एवं पार्टी के वरिष्टों का समर्थन मिल रहा था वहीं तत्कालीन आमदार को मुख्यमंत्री का खुला समर्थन था। इस उह-पोह की स्थिति में स्थानीय कार्यकर्ता, पदाधिकारी एवं भाजपा समर्थक पुर्व महापौर से खुले रुप से मिलने में कतराते थे जिसका फायदा विरोधी दल को मिलता दिखाई दे रहा था।
अंतत: तत्कालीन आमदार के सत्तापक्ष ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया जबकि पुर्व महापौर की स्वच्छ छवि एवं जन समर्थन को देखते हुए विपक्षी दल के वरिष्टों ने अपना उम्मीदवार बनाने की कवायद शुरु कर दी लेकिन पुर्व महापौर ने अपना नामांकन एक निर्दलीय उम्मीदवार में किया।
पुर्व महापौर का जनाधार लगातार बढ़्ता देख तत्कालीन आमदार के चहेते नगरसेवक एवं समर्थकों ने पुर्व महापौर के साथ फिर से बदसलुकी की, यह उन लोगों (सत्तापक्ष) के हताशा को बयान कर रही थी।
इस शहर में सत्ता पक्ष के कई केंद्रीय मंत्रीयों, अन्य राज्यों के मंत्रीयों, सांसदों एवं दुसरे राज्य के प्रचारक, सांसद, विधायक, प्रदेश अध्यक्ष आदि कई सभाएँ की जिसमें तत्कालीन आमदार द्वारा किए गए विकास कार्यों का व्योरा दिया जाता था, जबकि पुर्व महापौर स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अपने ९ वचनों को चुनावी मुद्दा बनाया।
मिरा भाईंदर शहर की जनता यह जानती थी कि कैसे तत्कालीन आमदार ने मात्र दस-पंद्रह वर्षों में हजारों करोड़ का अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया है, ऐसे में यहाँ की जनता ने पुर्व महापौर के वचनों एवं उनकी स्वच्छ छवि को तरजीह दिया।
विधानसभा २०१९ चुनाव के नतीजों का इंतजार यहाँ का हर नागरिक कर रहा था क्योंकि इस शहर की दिशा एवं दशा इस बात पर निर्भर करता था कि चुनाव में जीत किसकी होगी। चुनाव का परिणाम यहाँ के जनता के आशानुसार ही आया जिसमें तत्कालीन आमदार के कार्यों एवं वायदों को जनता ने नकार दिया।
मिरा भाईंदर विधानसभा के मतदाताओं ने पहली बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक महिला के हाथों सौंपा, इस उम्मीद के साथ कि विजयी महिला आमदार इस क्षेत्र के स्थानीय मुद्दों को विधानसभा में उठाएगी एवं उसका निवारण समुचित तरीके से करवाएगी जिसका दूरगामी परिणाम इस शहर के नागरिकों को मिलेगा।